नई दिल्‍ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। महज दो दिन बाद 31 जनवरी को आसमान में इस साल का पहला चंद्रग्रहण दिखाई देगा। लेकिन इस बार का चंद्रग्रहण बेहद खास होगा। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि इस बार ब्‍लडमून और ब्‍लूमून या सुपरमून एक साथ दिखाई देने वाला है। अगर आपको इस बारे में जानकारी नहीं है तो हम आपको बता देते हैं कि यह सिर्फ चंद्रग्रहण ही नहीं बल्कि पूर्ण चंद्रग्रहण है, जो तीन सालों बाद दिखाई देने वाला है। भारत, इंडोनेशिया, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में यह पूर्ण चंद्रग्रहण साफ-साफ देखा जा सकेगा। भारत में यह शाम 5:58 मिनट से शुरू हो कर 8:41 मिनट तक मतलब 77 मिनट के लिए दिखाई देगा। इस बार यह चंद्रग्रहण इसलिए भी खास है क्‍योंकि इसको नंगी आंखों से देखा जा सकता है।
इससे पहले तीन दिसंबर 2017 और एक जनवरी 2018 को काफी नजदीक से ब्‍लूमून दिखाई दिया था। सुपरमून की झलक की इस तिकड़ी में शायद यह इस साल आखिरी मौका होगा। सुपरमून एक आकाशीय घटना है जिसमें चांद अपनी कक्षा में धरती के सबसे निकट होता है और संपूर्ण चांद का स्पष्ट रूप से इसको देखा जा सकता है। 31 जनवरी को होने वाली पूर्णिमा की तीन खासियत है। पहली यह कि यह सुपरमून की एक श्रंखला में तीसरा अवसर है जब चांद धरती के निकटतम दूरी पर होगा।
दूसरी यह कि इस दिन चांद सामान्य से 14 फीसदा ज्यादा चमकीला दिखेगा। तीसरी बात यह कि एक ही महीने में दो बार पूर्णिमा होगी, ऐसी घटना आमतौर पर ढाई साल बाद होती है और अकसर पूर्णिमा एक महीने में एक ही बार आती है। लेकिन कभी-कभी पूर्णिमा एक महीने में दो बार भी हो जाती है। पहली या दूसरी तारीख को पूर्णिमा होने पर ऐसा होता है। एक महीने में दूसरी बार आने वाली पूर्णिमा को ब्लू मून कहते हैं। यानि जब एक ही महीने में पूर्णिमा का चांद दूसरी बार नज़र आये तो वो ब्लू मून कहलाता है।


यह इसलिए भी खास होगा क्‍योंकि इस दिन चांद तीन रंगों में दिखाई देगा। ऐसी घटना 35 वर्ष बाद देखने को मिलेगी, जिसमें सूपर मून, ब्लू मून और ब्लड मूल तीन रूपों के दीदार हो सकेंगे। ऐसी दुर्लभ घटना एशिया में 30 दिसंबर 1982 को हुई थी। 31 जनवरी के बाद भारत में 27 जुलाई को चंद्र ग्रहण देखा जा सकेगा। लेकिन वह ब्लू मून या सूपर मून की तरह नहीं होगा।
आईए अब जानते हैं कि आखिर क्या होता है सुपर मून, ब्लू मून और ब्लड मून?



सुपर मून
जब चांद और धरती के बीच में दूरी सबसे कम हो जाती है और पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच में आ जाती है तब चंद्रग्रहण होता है। इसको ही 'सुपर मून' कहते हैं। ऐसी स्थिती में चांद लगभग 14 फीसदी बड़ा और 30 फीसदी तक ज्यादा चमकीला दिखाई देता है।



ब्लू मून
इस चंद्रग्रहण पर पूर्ण चंद्रमा दिखेगा और जब ऐसा होता है तो चांद की निचली सतह से नीले रंग की रोशनी बिखरती है जिसकी वजह से इसको 'ब्लू मून' भी कहा जाता है। अगला 'ब्लू मून' साल 2028 और 2037 में देखने को मिलेगा।
ब्लड मून
पृथ्वी की छाया जब पूरे चांद को ढक देती है उसके बाद भी सूर्य की कुछ किरणें चंद्रमा तक पहुंचती हैं. लेकिन चांद तक पहुंचने के लिए उन्हें धरती के वायुमंडल से गुजरना पड़ता है। इसके कारण सूर्य की किरणें बिखर जाती हैं। पृथ्वी के वायुमंडल से बिखर कर जब किरणें चांद की सतह पर पड़ती हैं तो सतह पर एक लालिमा बिखर जाती है, जिससे चांद लाल रंग का दिखने लगता है। लाल रंग का दिखाई देने की वजह से ही इसको कई जगह और कई सभ्यताओं में 'ब्लड मून' के तौर पर किया गया है।
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